*मनकहताआगेचल*
मनकहताआगेचल
अंजानी है राहें,
बेपरवाह निगाहें।
मंजि़लों का,
मंज़र दूर सही।
मन कहता
आगे चल।
अंधियारा,
छाया हो।
विषम
परिस्थितियों का
कितना ही,
घना साया हो,
कितनी भी हो,
दूर डगर
मन कहता,
आगे चल।
कहीं भीड़,
कहीं अकेलापन हो।
मझधार में,
फंसा तेरा मन हो।
जीवन की,
यह माया है।
तेरे स्वप्न-विचारों पर
कैसा भी
घना साया हो।
मन कहता,
आगे चल।।
सपनों के पूरे,
होने का क्षण,
क्या मेहनत के
बिन आया है?
कठिन परिश्रम
के बाद ही,
मनुष्य ने
मंजि़लों को,
पाया है।
मंजि़ले हों
दूर सही,
अतःमन में,
सद्भाव लिए,
अवगुणों से,
अवकाश लिए।
मन कहता
आगे चल।
भूत गया,
वर्तमान के,
उच्च विचारों से।
भविष्य का,
मंथन कर ले।
बिना डरे,
ना रुके कहीं।
सच्चाई के,
पथ पर,
निश्चित ही।
मन कहता,
आगे चल।
मन कहता
तू आगे चल।।
डॉ प्रिया।
अयोध्या।