मनई
अजब जहाँ क गजबे अन्हरिया भरल हवे निराशा जी…..
आजु के जुग में बदल गइल बा मनई क परिभाषा जी…..
अजब जहाँ क गज़ब अन्हरिया भरल हवे निराशा जी…
आजु के जुग में बदल गइल बा मनई क परिभाषा जी…
इ ह उहै मनइया जेहके
बनवले रहन नरायन जी…
सबसे सुघर रतन हौ
मनई बतवले रहलन
नरायन जी….
आज अगर इ दूरहि से
करतब करेला जइसे अमवसा जी…
आजु के जुग में बदल गइल बा मनई क परिभाषा जी….
कहेला कछू करेला कछू
झूठन क सरताज हव ई…
समझ न पावे आपन करतब ,
हन्ता पक्षी बाज हव ई…
एकर करनी देख लेहु त,
दूर से आवइ बासा जी…
आजु के जुग में बदल गइल बा मनई क परिभाषा जी….
अपने गुन क करत नाही
कवनहु तरक्की जी…
छाडत हव विश्वास अवरहू रहत हौहर मन शक्की जी…
मन चंचल चपला के चाल में चलत हौ जइसे चक्की जी…
हमहन त कछु समझ न पाईं कवन चाल हव पक्की जी…
एहि खातिर अब दूर भइल सुंदर सुघ्घर आशा जी…
आजु के जुग में बदल गइल बा मनई क परिभाषा जी…
डा पूनम श्रीवास्तव (वाणी)