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4 Dec 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
04/12/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

मरघट जाना ही होगा, जितना भी कोशिश करो, यही मनुज का धाम।
ये सुंदर काया जलकर, धुँआ धुँआ जाये बिखर, मिट जायेगा चाम।।
जिसे सजाकर इतराता, तेल फुलेल लगा रहा, आये किसका काम।
कहता हूँ सुनता कब है, फिकर करो अपना अभी, जप ले सीताराम।।

क्यों मरने से डरता है, सारी दुनिया मर रही, तू भी लगा कतार।
कब तक तू बच पायेगा, छुपकर जग भर देख ले, पड़े काल की मार।।
ये तेरी सुंदर सूरत, जिस पर तू इतरा रहा, खोजे कंधे चार।
मृत्यु लोक की रीत यही, सभी बराबर हैं यहाँ, मरघट सबका द्वार।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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