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21 Nov 2024 · 1 min read

*मनः संवाद—-*

मनः संवाद—-
21/11/2024

मन दण्डक — नव प्रस्तारित मात्रिक (38 मात्रा)
यति– (14,13,11) पदांत– Sl

हमने जाना अब पूरा, कैसा यह व्यक्तित्व है, कितना है संभ्रान्त।
कहाँ दिखावा करता है, कितनी इसमें असलियत, अंदर कितना शान्त।।
बाहर से संस्कारित है, बड़ा पूज्य बनता फिरे, अंतर घट आक्रान्त।
सिर्फ दूसरों को ठगता, जितना नगदी आ सके, बना रखा सिद्धान्त।।

दक्ष वाकचातुर्य सदा, चालाकी में लोमड़ी, परधन किया निगाह।
कल तक थी झोपड़ी जहाँ, आज सजी अट्टालिका, पाया धनिक प्रवाह।।
सामाजिक मान प्रतिष्ठा, धन के चलते ही बढ़ी, धर्म वचन कर दाह।
आध्यात्मिक व्यवसाय बना, कहते फिरते हरि कथा, सब से लापरवाह।।

— डॉ. रामनाथ साहू “ननकी”
संस्थापक, छंदाचार्य, (बिलासा छंद महालय, छत्तीसगढ़)
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