मध्यम मार्ग
गाँव में पला-बढ़ा
गाँव की बोली भाषा जानने वाला
गाँव की सभ्यता-संस्कृति जीने वाला
निःस्वार्थ आस्था रखने वाला
शाश्वत प्रेम में यकीन रखने वाला
सदैव एकता व अखंडता की पाठ पढ़ने वाला
जब रुख किया शहर की ओर…
मैंने महसूस किया, देखा…
भीड़ में अकेलापन
सभ्यता-संस्कृति < आधुनिकीकरण
आस्था की आड़ में छिपा स्वार्थ
भाषा का अलग स्वरूप
समूहों में अनेकता
प्रेम अर्थात छल/वासना
दोस्ती/रिश्ता अर्थात जरुरत
इन सब के उपरांत
असमंजस में था,
दो विकल्प थे मेरे समक्ष
या तो वापस चला जाऊं
या रुक जाऊं,
चूंकि "जाना" शब्द
मुझे पसंद नहीं,
और केदारनाथ सिंह जी का लिखा
तो पढ़ा ही होगा आपने –
"जाना हिन्दी की सबसे खौफनाक क्रिया है।"
ऐसे में
शहर में रुकने के सिवा
अन्य विकल्प नहीं था
मेरे पास।
इस विकल्प पर
काफ़ी आत्मचिंतन के पश्चात
याद आए मुझे बुद्ध
और याद आया
उनका" मध्यम मार्ग"।
मध्यम मार्ग का मिलना
मानों मृतप्राय व्यक्ति को
मिल गयी हो संजीवनी।
और तब से अब तक
अनवरत प्रयत्नशील हूँ
स्वयं को इस मध्यम मार्ग पर
लाने के लिए…
और स्वयं में
निःस्वार्थ, निश्छल रुप से
समाहित कर जाना चाहता हूँ…
प्रेम
एकता
आस्था
रिश्ता
सभ्यता
संस्कृति ।