‘ मधु-सा ला ‘ चतुष्पदी शतक [ भाग-2 ] +रमेशराज
चतुष्पदी——–26.
बेटे की आँखों में आँसू, पिता दुःखों ने भर डाला
मजा पड़ोसी लूट रहे हैं देख-देख मद की हाला।
इन सबसे बेफिक्र सुबह से क्रम चालू तो शाम हुयी
पूरे घर में महँक रही है सास-बहू की मधुशाला।।
+ रमेशराज
चतुष्पदी——–27.
ससुर-सास के अंकुश त्यागे, घर कुरुक्षेत्र बना डाला
लाँघ रही है मर्यादाएँ नये जमाने की बाला
पति बेचारा हारा-हारा चिन्ताओं से ग्रस्त हुआ
सोच रहा है मेरे घर में आयी कैसी मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–28.
दुःख-दर्दों से भरा हुआ है जीवन में सुख का प्याला
अब पीने को मिलती केवल घोर अभावों की हाला
संशय और तनाव आजकल हमप्याला बन बैठे हैं
अपने हिस्से में आयी है बस आँसू की मधुशाला।
रमेशराज
चतुष्पदी——–29.
राम और रावण को सँग-सँग अब पीते देखा हाला
समझौतों का अजब गणित है, लक्ष्मण भी है हमप्याला
नये दौर की नयी कथा है, धन-वैभव की माया ये
इस किस्से में बनना तय है हर सीता को मधुशाला।
रमेशराज
चतुष्पदी——–30.
गौतम ऋषि की पत्नी बदली आज नहीं वैसी बाला
भले शाप कोई दे उसको, छलकेगा फिर भी प्याला।
कामदेव की कृपादृष्टि से आज अहल्या लाखों में
अब ऋषि को भी भाती ऐसी, धन लाती घर मधुशाला।
रमेशराज
चतुष्पदी——–31.
गोदरेज की डाई से झट करता बालों को काला
खाकर शिलाजीत अब बुड्ढा पीने बैठा है हाला
पतझड़ अपना रूप निहारे रोज विहँसकर शीशे में
साठ साल के बुड्ढे को है बीस बरस की मधुशाला।
+रमेशराज
चतुष्पदी——–32.
मरा पड़ौसी, उसके घर को दुःख-दर्दों ने भर डाला
हरी चूडि़याँ टूट गयीं सब, हुई एक विधवा बाला।
अर्थी को मरघट तक लाते मौन रहे पीने वाले
दाहकर्म पर झट कोने में महँकी उनकी मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–33.
नेता-मंत्री-अफसर करते घोटाले पर घोटाला
इनके भीतर बोल रही है कलियुग के मद की हाला।
बापू की सौगंधें खाते नहीं अघाते जनसेवक
इनकी करतूतों में केवल बसी पाप की मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी—–34.
कानूनों के रखवालों ने हवालात में सच डाला
कैसी है ये नयी रोशनी दिशा-बोध जिसका काला।
दीवाली पर दीप न दीखें, तम के प्रेत मुडेरों पर
बस नेता के घर मुस्काये आज उजाला-मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–35.
व्यभिचारी ने देख अकेली इज्जत पर डाका डाला
रेप किया घंटों पापी ने, सुबक उठी वह मधुबाला।
अबला थी लाचार हार कर दौड़ लगायी सीढ़ी पर
और नहीं सूझा कुछ उसको, छत से कूदी मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–36.
राम आज के पहुँच रहे हैं कोठे पर पीने हाला
लक्ष्मण पीछे-पीछे इनके ताक रहे हैं मधुबाला।
आया है वनवास रास सब छूट्टी घर के अंकुश से
अब दोनों के बीच महँकती सूपनखा की मधुशाला।
–रमेशराज
चतुष्पदी——–37.
भोग अगर चाहे माया का, कर में ले तुलसी-माला
रँग ले वस्त्र गेरूआ प्यारे, धारण कर ले मृगछाला।
रामनाम के मंत्रों का जप हर बाला को भायेगा
तेरे पास स्वयं आयेंगे प्याला-हाला-मधुशाला।।
— रमेशराज
चतुष्पदी——–38.
अब का रावण जान गया है ‘अंगद है पीनेवाला’
कुम्भकरण से तुरत मँगाये हाला के सँग मधुबाला।
अडिग पाँव अंगद का फौरन मर्यादा से खिसक उठे
राम-कथा पर अब भारी है लंकासुर की मधुशाला।।
— रमेशराज
चतुष्पदी——–39.
द्रोणाचार्य आज के कहते-‘एकलव्य ले आ हाला
यही दक्षिणा माँगूँ तुझसे हाला के सँग हो बाला।
हुई तपस्या पूरी तेरी, मैं खुश हूँ ‘विद्या’ को लखि
अरे बाबरे घोर साँवरे परमलक्ष्य है मधुशाला’।।
-रमेशराज
चतुष्पदी——–40.
देख सुदामा की हालत को द्रवित हुआ वंशीवाला
बालसखा के सम्मुख आयी आज कहानी में हाला।
कहा श्याम ने ‘समझो दुर्दिन दूर हुए तेरे पंडित
खूब कमाना घर पर जाकर खुलवा दूँगा मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–41.
करती थी बस चौका-बर्तन जिसके घर निर्धन बाला
एक रात वह भी चख बैठी मालिक के तन की हाला।
घर के मालिक ने अबला को कैसी दी सौगात नयी
आज कोख में चहक रही है एक अनैतिक मधुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–42.
हर ‘ईमान’ आजकल पीता भ्रष्ट आचरण की हाला
और ‘न्याय’ के हाथों में है गलत फैसले का प्याला।
आज विरक्ति-भरा विश्लेषण कामक्रिया से युक्त मिला
बस्ती-बस्ती खोल रही है लोक-लाज अब मधुशाला।।
—–रमेशराज
चतुष्पदी——–43.
गर्वीला व्यक्तित्व आजकल चापलूस का हमप्याला
गैरत छोड़ हुआ बेगैरत माँग रहा छल की हाला।
रँगे विदेशी रँग में अपने सदाचार के सब किस्से
आज स्वयं का गौरव हमने बना लिया है मधुशाला।।
—-रमेशराज
चतुष्पदी——–44.
कलमकार भी धनपशुओं का बना आजकल हमप्याला
दोनों एक मेज पर बैठे पीते हैं ऐसी हाला।
निकल रहा उन्माद कलम से, घृणा भरी है लेखों में
महँक छोड़ती अब हिंसा की, अलगावों की मधुशाला।।
—रमेशराज
चतुष्पदी——–45.
आज अदालत बीच महँकती केवल रिश्वत की हाला
अब सामाजिक अपराधी के जज साहब हैं हमप्याला।
न्याय ठोकरें खाता फिरता, झूठ तानता है मूछें
हित साधे अब अन्यायी के न्यायालय की मधुशाला।।
—-रमेशराज
चतुष्पदी——–46.
राजा ने की यही व्यवस्था दुराचरण की पी हाला
प्याला जिसके हाथों में हो, बन जा ऐसा मतवाला।
मत कर चिन्ता तू बच्चों की, मत बहरे सिस्टम पर सोच
तेरी खातिर जूआघर हैं, कदम-कदम पर मध्ुशाला।।
रमेशराज
चतुष्पदी——–47.
सदभावों को चढ़ी आजकल सम्प्रदाय की वह हाला
हर आशय केवल थामे है पागलपन का मधुप्याला।
गर्व सभी का दिखा रहा है एक-दूसरे को नीचा
हर विचार में महँक रही है मतभेदों की मधुशाला।।
—-रमेशराज
चतुष्पदी——–48.
क्या सिस्टम से लड़े हौसला, मरा स्वप्न हिम्मतवाला
आज सनातन ब्रह्मचर्य भी माँग रहा सुन्दर बाला।
हाला पीकर धुत्त पड़ी हैं सभी क्रान्ति की उम्मीदें
रोश-भरे अनुमान हमारे पहुँच गये हैं मधुशाला।।
—रमेशराज
चतुष्पदी——–49.
सारे पापी लामबन्ध हैं, त्रस्त सभी को कर डाला
कहीं किसी बाला को लूटा, किया कही करतब काला।
हम साहित्यिक तर्कवीर हैं, हमें बहस की खुजली है
रीढ़हीन हड्डी का चिन्तन पुष्ट कर रहा मधुशाला।।
—रमेशराज
चतुष्पदी——–50.
कविता-पाठ बाद में कवि का, पहले पीता है हाला
कवि के साथ शायरा बनकर आती है सुन्दर बाला।
बस उछलें अश्लील पंक्तियाँ और चुटकुले मंचों से
साहित्यिक माहौल हमारा आज बना है मधुशाला।।
—रमेशराज
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+रमेशराज, 15/ 109, ईसानगर , निकट-थाना सासनीगेट , अलीगढ़-202001
मो.-9634551630