*मधु मालती*
मधु मालती
हे!दमकना तुम जीवन में
निष्ठुर पंख मेरे सिमटे।
उड़ न जाऊँ याद से तेरे
बाँहों में तू फिर जी उठे।
जरा झरोखों से बूंदों को ताको
पर भींगे न निर्मल मन तुम्हारा।
काली लटें तुम तो समेटो
ये बादल तो मदहोश बेचारा।
झुको न ऐसे लजाकर
मधु मालती सी बनठन कर।
भौंरे जानते हैं राज तुम्हारा
ढल जाता यौवन जरा सम्हलकर।
फैली है खुशबू तुम्हारी भीनी
अब सब को बताओ न।
गिर जाओगे टूटकर
बारिश प्रीत की नहाओ न।
मन्द-मन्द मुस्कान से ये
अल्हड़ हया दिखलाती है।
तुम्हें क्या पता हे। इन्द्र
हर डाल पे जवानी आती है।
सुरेश अजगल्ले “इन्द्र”