मधुर जवानी
बीता बचपन,आई जवानी
ज्यों प्रसून पर छाई बहार,
सब कुछ सुंदर लगे धरा पर
अंखियों में छा गया खुमार,
चले झूमते मस्ती में यूँ
जैसे सिंह कोई वन में,
घूम रहे हैं अल्हड़ बनकर
ज्यों भंवरा कोई गुलशन में,
जहां कहीं देखें तरुणी दल
उमड़ें बादल बन बनकर,
शायद कोई बने दिलरुबा
पीछे देखें मुड़ मुड़ कर,
किंतु समय का पहिया घूमा
अकल आ गई ठीक समय,
ब्याह हुआ बीवी घर आई
दुनिया हो गई ज्योतिर्मय,
जिम्मेदारी आ गई सिर पर
घर में हो गई रेलमपेल,
खूब कमाया रुपया पैसा
जुतकर ज्यों कोल्हू के बैल
हर महफ़िल और हर जलसे में
चर्चा अपना आम था,
बूढ़े, बच्चे और जवां की
जुबां पे अपना नाम था।
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