मधुमय भारती
हिन्द हिमालय के तस्वीर रचाएँ जग में
कर शृंगार खड़ी धरती अगोरती अरुण के
राष्ट्र धरोहरों के दीवाने वतन है हम
सरहद शहादत के फूल – कलियाँ बनें हम
सप्तरंगीय इन्द्रधनुष रचूँ अम्बर के कोने में
कोटि – कोटि नमन करुँ भवानी मातृभूमि की चरणों में
उत्तर – दक्षिण , पूरब – पश्चिम हो विश्व गुरु जहाँ वतन
सर्वधर्म संस्कृति सत्यमेव जयते के सार तत्व बनें हम
शीश कटा अर्पण मेरी मधुमय भारती की भूमि
वशंज बनें हम राम , कृष्ण , हरिश्चंद्र की
और बनें मराठा राजपुताना शिवाजी महाराणा की
केतन ले दौड़ चलूँ , हो जहाँ नीरज भाला का कमान
प्रथम पूज्यते माँ पिता गुरुवर के हो जय जयकार
देव सनातन ऊर्ध्वंग पर्वत धरा को धोएँ गंगा है
चढ़ गयी शिखर माला ध्वज में महोच्चार हो कहाँ ?
माटी चन्दन का तिलक जहाँ , कहाँ क्या किस नतमस्तक में ?
इन्कलाब शौर्य अपना रक्तरंजित हो गिरे फिरंगी
अमृत महोत्सव जम्मू द्वीपे दिव्य ज्योति खिले अर्पित सुमन में
सौगन्ध मेरी जितनी बार , नैतिक धर्म , सत्यनिष्ठ , कर्तव्य हमारी
नई दिशाएँ नई उमंग भरे जोश हो जितने बार उमड़