*मदिरा हॅंसी-खेल में पीता है(गीतिका)*
मदिरा हॅंसी-खेल में पीता है(गीतिका)
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(1)
पहले-पहल मिली जब मदिरा, हॅंसी-खेल में पीता है
फिर पीती मदिरा मानव को, थोड़े दिन ही जीता है
(2)
जिसने शुरू किया मदिरा का पान दशानन बन बैठा
घर पर उसके रोज बहाती, रहती ऑंसू सीता है
(3)
क्या विश्वास भला कहने का, उसके व्यक्ति पियक्कड़ जो
भले शपथ के समय हाथ में, थामे पावन गीता है
(4)
चाहे जितना धन को अर्जित कर लेता पीने वाला
किंतु अंत में धन-वैभव-यश,मान-भाव से रीता है
(5)
मिलता है अपमान-उपेक्षा, मदिरा पीने वालों को
डगमग करते पैरों में ही, सारा जीवन बीता है
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा
रामपुर उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997 61 5451