मदिरा सवैया छंद
छंद- मदिरा सवैया (वर्णिक)
विधान-7 भगण +एक गुरु
गोकुल में प्रभु रास रचा, अब मोर शिरोमणि श्याम रमे।
होठ धरी मुरली हरि के, जन चैन चुरा कहुँ रूप जमे।
साँवरि सूरति मोह लियो, घर-बाहर धूम मचे न थमे।
प्रीति पगी धुन रीत सिखा, तन रोग लगा मन मोह भ्रमे।।
भोग विलास चले पुरवा,तब फूल खिले मकरंद बहे।
बाजत ढोल-मृदंग सजे, सुर कूल तरंग प्रसंग कहे।
फाग छटा बिखरी जग में,नर गोकुल धाम बिराज रहे।
कृष्ण प्रिया प्रभु नेह लगा, अब पीर घनी उर माँहि सहे।।
डॉ. रजनी अग्रवाल ‘वाग्देवी रत्ना’
वाराणसी (उ. प्र.)