मदिरा रानी तुम्हें नमन।
पृथ्वी स्वर्ग पाताल लोक तक,
रहता तेरा भ्रमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
सागर मंथन उदभव तेरा,
भद्र हृदय में तेरा बसेरा।
जो भी तुमको है अपनाता ,
शुक्राचार्य शिष्य बन जाता।
यहाँ वहाँ करे रमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
कलियुग में तेरी महिमा भारी।
तुम पर रीझे बहु नर नारी।
कुछ तेरे बिन न रह पाए।
कुछ तो रात दिवस तुम्हें ध्याएँ।
पीकर करें वमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
जब सिर पर तुम चढ़ जाती हो,
सारे गम से बहलाती हो।
कायर भी योद्धा बन जाये,
छक कर खुब उत्पात मचाये।
लगड़ा करे भ्रमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
पत्नी से पंगा करवाती,
बच्चे को नँगा घुमवाती।
जिस पर होत सवारी तेरी,
नाली या पथ पर लोटवाती।
रुपया करे गमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
धन्यवाद तुम दूर हो मुझसे,
कण भर इच्छा न मेरी तुझसे।
जो चाहे उसके हिय बहना।
मेरे कुल से दूर ही रहना।
मैं करूं तेरा दमन।
मदिरा रानी तुम्हें नमन।
-सतीश सृजन, लखनऊ.