मदिरालय
धर्म-जाति सब लड़ रहे थे,
सुहाग किसी का लुट रहा था,
नवजातों का खून था बिखरा,
कहीं आश्रय किसी का टूट रहा था,
नफरत की इस आंधी में टूटे थे,
गिरजा, मस्जिद और शिवालय,
सब भूले बैठे इंसान जहां पे,
वो चुपचाप खड़ा था मदिरालय।
©ऋषि सिंह
धर्म-जाति सब लड़ रहे थे,
सुहाग किसी का लुट रहा था,
नवजातों का खून था बिखरा,
कहीं आश्रय किसी का टूट रहा था,
नफरत की इस आंधी में टूटे थे,
गिरजा, मस्जिद और शिवालय,
सब भूले बैठे इंसान जहां पे,
वो चुपचाप खड़ा था मदिरालय।
©ऋषि सिंह