मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मैं दीपक बनकर के अब दीप जलाने निकला हूं..
संघर्षों की जद् मैं कब तक तुम मुझको रुकोगे
छोटे-छोटे लफ्जों को आवाज बनाने निकला हूं
✍️कवि दीपक सरल
मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मैं दीपक बनकर के अब दीप जलाने निकला हूं..
संघर्षों की जद् मैं कब तक तुम मुझको रुकोगे
छोटे-छोटे लफ्जों को आवाज बनाने निकला हूं
✍️कवि दीपक सरल