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31 Mar 2024 · 1 min read

मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं

मदहोशी के इन अड्डो को आज जलाने निकला हूं
मैं दीपक बनकर के अब दीप जलाने निकला हूं..

संघर्षों की जद् मैं कब तक तुम मुझको रुकोगे
छोटे-छोटे लफ्जों को आवाज बनाने निकला हूं

✍️कवि दीपक सरल

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