मदमस्त अवस्था सोलह की
मुग्ध हुआ मैं, सौन्दर्य पर उसके
मदमस्त अवस्था सोलह में
तीक्ष्ण बाणों से हुआ मैं घायल
कटार सी उसके नेत्रों से
पास मिले हम,सुन्दर सी एक
पुष्पों से सुसज्जित उपवन में
हया नेत्रों में,काया सुगन्धित
और मुस्कान सजाए चेहरे पर
मुग्ध हुआ मैं, सौन्दर्य पर उसके
मदमस्त अवस्था सोलह में।
सोलह भेद के पुष्प खिले,जब
थामे हाथों में हाथ थे, हम
कूकी कोयल,बोले पपीहे
रंग भरे उस उपवन में
पहरेदार थीं साथ में उसकी
संग आई सोलह सखियाँ
श्रद्धाभाव में रहे समाहित
अनुराग बरसाते, उपवन में
मुग्ध हुआ मै, सौन्दर्य पर उसके
मदमस्त अवस्था सोलह में।
सौन्दर्य की सुरबाला प्रतीत हुई,वो
तन पर सोलह श्रृंगार किये
स्वर्ग सी अनुभूति मिली,हमें
स्नेह की मधुर फिजाओं में
आसक्ति की बारिश में थे भीग रहे,हम
बाहों के आलिंगन में
नम आंखों से विदा लिए,हम
लौट आये घर-आँगन में
मुग्ध हुआ मैं, सौन्दर्य पर उसके
मदमस्त अवस्था सोलह में।
– सुनील कुमार