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एक कंपनी की हर दीपावली की पूर्व संध्या पर एक पार्टी और लॉटरी आयोजित करने की परंपरा थी..!
लॉटरी ड्रा के नियम इस प्रकार थे: प्रत्येक कर्मचारी एक फंड के रूप में सौ रुपये का भुगतान करता है..! कंपनी में तीन सौ लोग थे,यानी कुल तीस हजार रुपये जुटाए जा सकते हैं..! विजेता सारा पैसा ले जाता है..!
लॉटरी ड्रा के दिन कार्यालय चहल-पहल से भर गया..! सभी ने कागज की पर्चियों पर नाम लिखकर लॉटरी बॉक्स में डाल दिया..!
हालांकि एक युवक लिखने से झिझक रहा था..! उसने सोचा कि कंपनी की सफाई वाली महिला के कमजोर और बीमार बेटे का नए साल की सुबह के तुरंत बाद ऑपरेशन होने वाला था, लेकिन उसके पास ऑपरेशन के लिए आवश्यक पैसे नहीं थे, जिससे वह काफी परेशान थी..!
भले ही वह जानता था कि जीतने की संभावना कम है, केवल 0.33 प्रतिशत संभावना, उसने नोट पर सफाई वाली महिला का नाम लिखा..!
उत्साहपूर्ण क्षण आया। बॉस ने लॉटरी बॉक्स को हिलाते हुए उस में से एक पर्ची निकाला..! वह आदमी भी अपने दिल में प्रार्थना करता रहा: इस उम्मीद से कि सफाई वाली महिला पुरस्कार जीत सकती है..! तब बॉस ने ध्यान से विजेता के नाम की घोषणा की, और लो – चमत्कार हुआ!
विजेता सफाई वाली महिला निकली..! कार्यालय में खुशी की लहर दौड़ गई और वह महिला पुरस्कार लेने के लिए तेजी से मंच पर पहुंची..! वह फूट-फूट कर रोने लगी और कहा, “मैं बहुत भाग्यशाली और धन्य हूँ! इस पैसे से, मेरे बेटे को अब आशा है!”
इस “चमत्कार” के बारे में सोचते हुए, वह आदमी लॉटरी बॉक्स की ओर बढ़ा..! उसने कागज का एक टुकड़ा निकाला और यूँ ही उसे खोला..!
उस पर भी सफाई वाली महिला का नाम था..! वह आदमी बहुत हैरान हुआ..! उसने एक के बाद एक कागज के कई टुकड़े निकाले..!
हालाँकि उन पर लिखावट अलग-अलग थी, नाम सभी एक ही थे..! वे सभी सफाई वाली महिला के नाम थे..! आदमी की आँखों में आँसू भर आए और वह स्पष्ट रूप से समझ गया कि यह क्या चमत्कार है, लेकिन चमत्कारी आसमान से नहीं गिरते, लोगों को इसे खुद बनाना पड़ता है…!