मत -भेद
मनुष्य के मन में बहुत प्रकार के मत उत्पन्न होते चले गए।जबकि हमारे वेदों में सब कुछ वर्णित था। हमने उन्हें न तो ठीक से पढ़ा, और ना ही ठीक से समझाया गया था। मनुष्य हमेशा अपने मन की ही मानता रहता है। और अपने अंदर मतभेद उत्पन्न करता रहता है।हम अपने विचार तो प्रकट कर सकते हैं।पर धर्म से बिमुख नही होना चाहिए था। और ना ही कोई दूसरा धर्म बनाना चाहिए था।इन धार्मिक रास्ताओ के अलग होने के कारण ही हम अपने अंदर के प्रेम को खो चुके हैं।जो हमने मानवीय मर्यादा बनाई थी, वो नष्ट होती चली गई। मनुष्य को मनुष्य रहने नही दिया, हमने इतने धर्म निर्माण कर दिये। इसलिए ही हम मानवीय पटल पर एक नही हो सकतें हैं। इसलिए आज हम एक धार्मिक युद्ध से जूझ रहे हैं।आज हम इतने बारीक पिसा चुके,कि इन कणों को आपिस में जोड़ना मुश्किल है। क्यों कि मनुष्य ने ही अपने आप को महान बनने की चाह में,इतने धर्मों का निर्माण कर दिया है।आज मनुष्य ने मनुष्य से प्रेम करना नही सीखा है। और वह कहता तो रहा है,कि सभी जीवों से प्रेम करो!अगर वह एक ही देवता बनाता तो,शायद आज हम एक-दूसरे से प्यार करते होते।आज हम अपने अपने मतों में उलझ कर रह गए हैं। और उन्हीं को सत्य मान लिया गया है।जब हमारे अन्दर सर्व जन सुखाय की भावना थी, तो हम एक प्लेट फार्म पर खड़े नहीं हो पाये हैं।जो लोग बुद्धि जीवी थे, हमने उन्हें पीछे कर दिया।अगर मनुष्य कबीरदास की बात मानता तो,शायद आज हम विश्व पटल पर एक हो सकतें थे।हम अलग-अलग रास्तों से गुजर कर क्यों जाना चाहते हैं?