मत छिपाओ राज कोई
~गीतिका~
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मत छिपाओ राज कोई आज मन की बात कह दो।
जिन्दगी का फलसफा है खोल कर जज्बात कह दो।
हम समन्दर तक गए थे बुझ न पाई प्यास लेकिन,
तुम मुहब्बत के सिले को स्नेह की बरसात कह दो।
हो गई थी दूर मंजिल पास अब आने लगी है,
प्यार से महकी हुई है खूब रौशन रात कह दो।
दोपहर की धूप सह ली शाम भी ढलने लगी है,
रात के तनहा पलों को महकते परिजात कह दो।
दर्द सहना भी जरूरी है मगर इस जिन्दगी में,
पल खुशी के आ न पाए तो इसे तुम मात कह दो।
जब यहाँ तुम कार्य करते हो कभी भी मान लो यह,
फल मिले जो भी उसे ही भाग्य की सौगात कह दो।
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– सुरेन्द्रपाल वैद्य, २४/०५/२०१८