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24 Feb 2024 · 1 min read

मत कुरेदो, उँगलियाँ जल जायेंगीं

साँस लेता आग हूँ
राख के परत में दबा हुआ
जल जल के रात भर
ओढ़ा राख का ये चादर

तन – मन तुम्हारे सर्द हो गये हैं अगर
तपिश तो अब भी इतनी है
हममे बाक़ी की सकून दे सकूँ
मेरी ही तपिश मुझसे ही ले उधार

किसी ख़ुदगर्ज़ की तरह
बस छेड़ना नहीं
अंदर की आग के राख की परत
मौसम के रूख़ का कुछ नहीं यक़ीं

ग़र हवा ने जमी राख हटा दिया
सोती चिंगारी को जो फिर जगा दिया
कच्चे कोमल पेड़ भी जल जायेंगे
राख भी उड़ेगी कुछ इस कदर

बरसों जो तुमने है ओढ़ रखी
झूठ की वो सफ़ेद चादर
कालिख़ से ढक जायेगी
फिर इस आग से लिपट कर
खुद राख़ हो जायेगी

मत कुरेदो – उँगलियाँ जल जायेंगीं

~ अतुल “कृष्ण”

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