चिड़िया रानी
ओ चिड़िया रानी !
मत आना तुम अब घर आंगन
बहुत विषैली हवा हो गई
गली – नगर सन्नाटा है
रह जाना अब उपवन कानन
यहां विषैला कांटा है
पहले जब आती
नीड़ बनाती
कितना मन को भाती थी
चीं – चीं के मधुर स्वरों से
सबकी भोर सजाती थी
अब रह ही जाना
वन उपवन कानन
मत आना तुम अब घर आंगन ।
यहां मनुज ने
अपने ही अमृत दाने को
विष से भर डाला है
और फ़िजा में ज़हर घोलकर
खुद ही संकट पाला है
ऐसे विष से भरे दाने को
चुगने अब तुम मत आना
अब रह ही जाना
वन उपवन कानन
मत आना तुम अब घर आंगन ।
जब भी मन होगा
तुझसे मिलने आएंगे
अपने बच्चों से भी
तुम्हें ज़रूर मिलाएंगे
और बताएंगे उनको फिर
ये है चिड़िया रानी
साथ ही बताएंगे
तेरी मधुर कहानी
तुम अब वहीं चहकती रहना
अपने उपवन कानन
ओ चिड़िया रानी !
मत आना तुम अब घर आंगन ।
अशोक सोनी
भिलाई ।