मत्तगयन्द सवैया
सुंदर पुष्प सजा तन-कंचन
केश -घटा बिखराय चली है।
अंजित नैन कटार बने
अधरों पर लाल लुभाय चली है।।
अंगहि चंदन गंध भरे
मद-मत्त गयंद लजाय चली है।
हाय! गयो हिय मोर सखे!
कटि जूँ गगरी छलकाय चली है।।
रचना-रामबली गुप्ता
सुंदर पुष्प सजा तन-कंचन
केश -घटा बिखराय चली है।
अंजित नैन कटार बने
अधरों पर लाल लुभाय चली है।।
अंगहि चंदन गंध भरे
मद-मत्त गयंद लजाय चली है।
हाय! गयो हिय मोर सखे!
कटि जूँ गगरी छलकाय चली है।।
रचना-रामबली गुप्ता