मत्तगयंद सवैया छंद
मत्तगयंद सवैया छंद
ईश कृपा करना इतनी हर ओर रहे सुख का उजियारा।
प्रेम रखें सब आपस में यह जीवन का
अब लक्ष्य हमारा।।
क्लेश कटे हर द्वेष मिटे अरु स्वर्ग बने अपना जग सारा।
याचक हूँ करबद्ध खड़ी प्रभु जी उर
आहत आज पुकारा।।
रात्रि विदा मिल वासर से अब लुप्त हुआ विधु संग सितारा!
भोर उजागर अर्चि उगी नव सूर्य जगा दमका जग सारा!
आस हमें उस ईश्वर की जिसने यह सुंदर सृष्टि सजाई!
हे परमेश्वर! हे करुणानिधि!नाथ कृपा रखना रघुराई!!
रंजना माथुर
अजमेर राजस्थान
मेरी स्वरचित व मौलिक रचना
©