मत्तगयंत सवैया (वीर रस)
रस का नाम :- वीर रस
विधा :- मत्तगयंद सवैया = भगण X 7 +गुरु+गुरु
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रचना
( ०१ )
धैर्य धरे कछु होत नहीं रिपु रक्त बहा कर राष्ट्र बचाओ।
दुष्ट खड़ा ललकार रहा सब आज उसे मिल मार भगाओ।
वीर अहो! रणकौशल से तुम दुश्मन को अब धूल चटाओ।
काल बनो विकराल बनो रिपु मार सदा निज मान बढ़ाओं।।
( ०२ )
भाव दया रिपु को दिखलाकर फर्क कहाँ कुछ भी पड़ना है।
अस्र लिए कर वीर चलो विधि भाग्य सदा तुमको गढ़ना है।
शीश कटे पर पाव बढाकर शीर्ष तुम्हें अब भी चढना है।
वक्ष घवाहिल होत भले अरि मर्दन को तब भी बढ़ना है।।
( ०३ )
वीर बढ़ो रणधीर बढ़ो रणभूमि तुझे अरि देख पराये।
युद्ध करो घनघोर सदा वह दूर खड़ा रिपु भी घबराये।
तान हिया तलवार लड़ो इह भांति सुनो भय भी भय खाये ।
मान रखो कुल शान रखो हर आँख यही बस आस लगाये ।।
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घोषणा :- मेरी यह रचना स्वरचित है।
(पं.संजीव शुक्ल ‘सचिन’)