मतलब
” मतलब ”
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मतलब……
केवल स्वार्थ नहीं !
लेकिन यह……..
कोई परार्थ नहीं |
बहुत से मायने हैं
इस मतलब के !
जैसे कि —
अर्थ
तात्पर्य
समझ
स्वार्थ
स्वहित !!
यदि स्वार्थ और
स्वहित ही है…
गूढ़तम रहस्य
मतलब के
तो इसमें इंसान
का क्या दोष ?
क्यों कि —
सत्व-रज-तम….
इन्हीं गुणों से
इंसान का रूप बदलता है |
काम-क्रोध-मद-लोभ
जैसे कषायों और
चित्त-वृत्तियों की प्रबलता
मनुज के……..
वास्तविक स्वरूप को
आवरण और
विक्षेप शक्ति द्वारा
ढ़क दी जाती हैं
तो मतलब का
मायावी स्वरूप
प्रस्फुटित होता है
जो उत्कर्ष को
अपकर्ष में !
विकास को
पतन में !
आदि को
अंत में !
मानुष को
अमानुष में
और सत्य को
असत्य में
परिवर्तित करके
इंसान से उसकी
इंसानियत…….
छीन लेता है
और लहराता है
परचम इस….
मतलब का ||
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– डॉ० प्रदीप कुमार “दीप”