“मतलब”
“मतलब”
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बात जब आती किसी दोस्ती या रिश्ते की।
छुपी होती उसमें निहित स्वार्थ मतलब की।
काश ! होती जो बात सदैव इंसानियत की।
तो मिलते सुकून के पल कभी फुरसत की।
( स्वरचित एवं मौलिक )
© अजित कुमार “कर्ण” ✍️
~ किशनगंज ( बिहार )
दिनांक :- 27 / 04 / 2022.
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