मतलब के रिश्ते नाते हैं
मतलब के रिश्ते नाते हैं
बेमतलब ग़म दे जाते हैं
होंठों पर बेशक़ ख़ामोशी
आँसू सब कुछ कह जाते हैं
किस मक़सद की ख़ातिर बोलो
आख़िर बस्ती जलवाते हैं
नफ़रत का बारूद बिछाकर
इक दूजे को लड़वाते हैं
मासूमों के जिस्मों तक पर
क्यूँ वो गोली बरसाते हैं
झूठे वादों से ये नेता
क्यूँ जनता को बहकाते हैं
लोगों की आवाज़ पे बन्दिश
लेकिन हाक़िम चिल्लाते हैं
हम कोई पत्थर के हैं क्या
हम भी ग़म से घबराते हैं
– डॉ आनन्द किशोर