मतलबी
जानकर भी वो अनजान से बने है ,
बेगाने ही सही हम खुद अपनी पहचान बने है ,
उनकी फ़ितरत का रुख़ हम जानते है ,
मरासिम को वो नफ़े के ज़र्फ़ से तौलते है ,
वक़्त बदलते ही वो रंग बदलते है
रसूख़ और दौलत की बिना पर इंसां को परखते हैं ,
हमदर्द बनकर वो भरोसा हासिल करते है ,
मतलब निकल गया तो बीच राह छोड़ चल देते हैं ।