#कुंडलिया//
अपना होकर गैर सम , कैसा वो इंसान।
जले और की जीत से , करता निज नुकसान।।
करता निज नुकसान , नहीं ख़ुशियाँ वो पाता।
जलकर लकड़ी राख , हस्र ऐसा हो जाता।
सुन प्रीतम की बात , रीस का देखो सपना।
ख़ुशी-ख़ुशी से जोड़ , धर्म यह हो बस अपना।
आँखें कहती राज सब , मुख दर्पण है एक।
चाँद चाँदनी कब छिपे , देखें इसे अनेक।।
देखें इसे अनेक , भेद दिल का तुम खोलो।
ग़लती होगी माफ़ , मगर सच पहले बोलो।
सुन प्रीतम की बात , मनुज में ग़लती रहती।
झुके समझ कर आप , न्याय मानवता कहती।
#आर.एस.’प्रीतम’