मतलबी दुनिया
मतलबी दुनिया
अब आप कहेंगे बात तो ये सही कह रहा है मगर स्वयंभू हो न, खुद का टाइम आता है तो सब भूल जाते हो, कि हाँ ये दुनिया वाकई मतलबी है।
बात शुरू अब करता हूँ- मतलबी शब्द का प्रयोग आज हर शख्स हरेक दफ़े कर देता है। जाने-अनजाने में या मुख से निकल ही जाता है ऐसा है ये अद्भुत शब्द, और भले निकले भी क्यों न क्योंकि सब मतलबी जो हैं।
जब सब मतलबी हैं (ये सभी जानते भी हैं) चाहे कोई दोस्ताना संबंध हो, आपसी घनिष्ठ मित्रता हो, चाहे हो कोई रिश्तेदार (ध्यान रहे रिश्तेदार में सभी को इन्क्लूड करना मत भूलना, सब का मतलब सब)
मेरी समझ से परे हैं कि कुछ लोग क्यों कभी-कभार ऐसे लिख देते हैं या बोल देते हैं अपने लेखों/व्याख्यानो में कि मेरा ऐसा रिश्ता? मेरा वैसा दोस्त? हलाना फलाना ढिमकाना आदि-आदि। बात करूं शोसल साइट्स की तो बप्पा यहाँ तो भरमार है लगभग हरेक तीसरा शख्स ऐसा लिखता है, और खासकर ये फ़ेसबुक यहाँ से लोगो का झूठ से झूठ में झूठ का और भी तरावट लाता है। इस फ़ेसबुक ने मुझे अच्छे दोस्त दिए, इसने हमें मिलवाया, आज हम इसी के बदौलत वगैरह वगैरह… न जाने और भी क्या-क्या।
जबकि सच्चाई बिल्कुल विपरीत। हाँ सार्थकता के तौर पर मान लिया जा सकता है कि असल में ऐसा है, मगर वास्तविकता बिल्कुल भी नहीं। गिने-चुने लोग ही होते हैं जो अन्य लोगो (जिनका वो गुणगान करते हैं वो दोस्त, रिश्तेदार कोई भी हो सकते हैं) का खासकर पीठ पीछे वाकई सम्मान और गुणगान करते हैं, बाकी सब गलियाते हैं, या कहूँ चुगली करते हैं इस घटना को आप अपने शब्दों में कुछ और भी कह सकते हैं।
इस मामले में स्त्रियाँ सबसे आगे हैं (बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा) – अरे वो मुखचढी, उसका थोपडा देखा तूने, उसका फैशन बप्पा वगैरह वगैरह (ये बातें पीठ पीछे ) सामने- हाय मेरी स्वीटी, क्या लग रही है, ये सूट बहुत अच्छा जच रहा है, तुम्हारा तो जवाब नहीं वगैरह वगैरह… पुरुषों की बात ही न करो तो बेहतर है यहाँ बात धैड-फैड तक आ जाती है, मगर इस मामले में पुरूष कम आंकलन कर पाते हैं (क्योंकि उनको अन्य फालतू काम जो करने होते हैं, समय का अभाव)
बातों को पढ़कर इग्नोर कर देने से कुछ नहीं होता, सब रिश्ते मतलबी ही होते हैं, यकीन न हो कभी आज़मा कर देखना- सब दोस्त, यार, सहेली, रिश्तेदारी सब दिख जाएगा क्या सच है! कौन यार है? कौन है दोस्त? और रिश्तेदारी भी।
✍️Brijpal Singh, Dehradun