Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
17 Feb 2020 · 2 min read

मतलबी दुनिया

✍️मतलबी दुनिया

अब आप कहेंगे बात तो ये सही कह रहा है मगर स्वयंभू हो न, खुद का टाइम आता है तो सब भूल जाते हो, कि हाँ ये दुनिया वाकई मतलबी है।

बात शुरू अब करता हूँ- मतलबी शब्द का प्रयोग आज हर शख्स हरेक दफ़े कर देता है। जाने-अनजाने में या मुख से निकल ही जाता है ऐसा है ये अद्भुत शब्द, और भले निकले भी क्यों न क्योंकि सब मतलबी जो हैं।

जब सब मतलबी हैं (ये सभी जानते भी हैं) चाहे कोई दोस्ताना संबंध हो, आपसी घनिष्ठ मित्रता हो, चाहे हो कोई रिश्तेदार (ध्यान रहे रिश्तेदार में सभी को इन्क्लूड करना मत भूलना, सब का मतलब सब)

मेरी समझ से परे हैं कि कुछ लोग क्यों कभी-कभार ऐसे लिख देते हैं या बोल देते हैं अपने लेखों/व्याख्यानो में कि मेरा ऐसा रिश्ता? मेरा वैसा दोस्त? हलाना फलाना ढिमकाना आदि-आदि। बात करूं शोसल साइट्स की तो बप्पा यहाँ तो भरमार है लगभग हरेक तीसरा शख्स ऐसा लिखता है, और खासकर ये फ़ेसबुक यहाँ से लोगो का झूठ से झूठ में झूठ का और भी तरावट लाता है। इस फ़ेसबुक ने मुझे अच्छे दोस्त दिए, इसने हमें मिलवाया, आज हम इसी के बदौलत वगैरह वगैरह… न जाने और भी क्या-क्या।

जबकि सच्चाई बिल्कुल विपरीत। हाँ सार्थकता के तौर पर मान लिया जा सकता है कि असल में ऐसा है, मगर वास्तविकता बिल्कुल भी नहीं। गिने-चुने लोग ही होते हैं जो अन्य लोगो (जिनका वो गुणगान करते हैं वो दोस्त, रिश्तेदार कोई भी हो सकते हैं) का खासकर पीठ पीछे वाकई सम्मान और गुणगान करते हैं, बाकी सब गलियाते हैं, या कहूँ चुगली करते हैं इस घटना को आप अपने शब्दों में कुछ और भी कह सकते हैं।

इस मामले में स्त्रियाँ सबसे आगे हैं (बुरा लगे तो माफ़ कीजियेगा) – अरे वो मुखचढी, उसका थोपडा देखा तूने, उसका फैशन बप्पा वगैरह वगैरह (ये बातें पीठ पीछे ) सामने- हाय मेरी स्वीटी, क्या लग रही है, ये सूट बहुत अच्छा जच रहा है, तुम्हारा तो जवाब नहीं वगैरह वगैरह… पुरुषों की बात ही न करो तो बेहतर है यहाँ बात धैड-फैड तक आ जाती है, मगर इस मामले में पुरूष कम आंकलन कर पाते हैं (क्योंकि उनको अन्य फालतू काम जो करने होते हैं, समय का अभाव)

बातों को पढ़कर इग्नोर कर देने से कुछ नहीं होता, सब रिश्ते मतलबी ही होते हैं, यकीन न हो कभी आज़मा कर देखना- सब दोस्त, यार, सहेली, रिश्तेदारी सब दिख जाएगा क्या सच है! कौन यार है? कौन है दोस्त? और रिश्तेदारी भी?

✍️Brij

Language: Hindi
Tag: लेख
2 Likes · 440 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
You may also like:
ख्याल
ख्याल
अखिलेश 'अखिल'
इंसान बुरा बनने को मजबूर हो जाता है
इंसान बुरा बनने को मजबूर हो जाता है
jogendar Singh
एक दिन
एक दिन
हिमांशु Kulshrestha
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
दीवारों की चुप्पी में राज हैं दर्द है
Sangeeta Beniwal
सूनी आंखों से भी सपने तो देख लेता है।
सूनी आंखों से भी सपने तो देख लेता है।
Prabhu Nath Chaturvedi "कश्यप"
गरीबी  बनाती ,समझदार  भाई ,
गरीबी बनाती ,समझदार भाई ,
Neelofar Khan
Bundeli Doha-Anmane
Bundeli Doha-Anmane
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
अब तू किसे दोष देती है
अब तू किसे दोष देती है
gurudeenverma198
#विजय_के_25_साल
#विजय_के_25_साल
*प्रणय*
3761.💐 *पूर्णिका* 💐
3761.💐 *पूर्णिका* 💐
Dr.Khedu Bharti
एक नस्ली कुत्ता
एक नस्ली कुत्ता
manorath maharaj
सजल
सजल
Rashmi Sanjay
शीर्षक – मां
शीर्षक – मां
Sonam Puneet Dubey
ओ त्याग मुर्ति माँ होती है
ओ त्याग मुर्ति माँ होती है
krishna waghmare , कवि,लेखक,पेंटर
लोग महापुरुषों एवम् बड़ी हस्तियों के छोटे से विचार को भी काफ
लोग महापुरुषों एवम् बड़ी हस्तियों के छोटे से विचार को भी काफ
Rj Anand Prajapati
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
कोई दुनिया में कहीं भी मेरा, नहीं लगता
Shweta Soni
#संवाद (#नेपाली_लघुकथा)
#संवाद (#नेपाली_लघुकथा)
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)
वृंदावन की कुंज गलियां 💐
वृंदावन की कुंज गलियां 💐
तारकेश्‍वर प्रसाद तरुण
पुस्तक समीक्षा
पुस्तक समीक्षा
Ravi Prakash
52.....रज्ज़ मुसम्मन मतवी मख़बोन
52.....रज्ज़ मुसम्मन मतवी मख़बोन
sushil yadav
गुरु रामदास
गुरु रामदास
कवि रमेशराज
Happy Father's Day
Happy Father's Day
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
वक़्त को वक़्त
वक़्त को वक़्त
Dr fauzia Naseem shad
चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता - व्यंग्य
चाह नहीं मुझे , बनकर मैं नेता - व्यंग्य
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
चाल चलें अब मित्र से,
चाल चलें अब मित्र से,
sushil sarna
"साहस"
Dr. Kishan tandon kranti
मैं खोया था जिसकी यादों में,
मैं खोया था जिसकी यादों में,
Sunny kumar kabira
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
कई बार हम ऐसे रिश्ते में जुड़ जाते है की,
पूर्वार्थ
सब कुछ खोजने के करीब पहुंच गया इंसान बस
सब कुछ खोजने के करीब पहुंच गया इंसान बस
Ashwini sharma
कुर्बतों में  रफ़ाकत   थी, बहुत   तन्हाइयां थी।
कुर्बतों में रफ़ाकत थी, बहुत तन्हाइयां थी।
दीपक झा रुद्रा
Loading...