मतदान
मतदान
दुःखड़ा जो रोते फिरते तुम ।
कि हो गया कहाँ विकास गुम ।।
कि योजनाएँ तो बहुत चली ।
कागजों में ही रहीं भली ।।
कि आज भी मेरे शहर में ।
रात हो या दोपहर में ।।
बढ़ा जुर्म और अत्याचार ।
बढ़ी चोरी बढ़ा व्यभिचार ।।
बढ़ा गुंडों का व्यापार ।
बढ़ गया भ्रष्टाचार ।।
तो तुम्हारे पास अब भी है ।
मतदान का अधिकार ।।
जाना अब तुम मतदान करने ।
अपनी समस्याओं का निदान करने ।।
सौदा न करना वोट का नोट से ।
न भरना घाव, दूसरी चोट से ।।
देना उसे ही अपना मत,
जो तुम्हें अपने रहते, रोने न दे ।
तुम्हारी खुशियों को खोने न दे ।।
योजनाओं को दे जो पूर्ण आकार ।
करे तुम्हारे सपने साकार,
तुम्हें दे तुम्हारे अधिकार ।।
रोओ न बस तुम दुखड़ा ।
करो मतदान की ओर मुखड़ा ।।
अपने अधिकार का सदुपयोग करो ।
मत, ले, दे कर, बिन रोग मरो ।।
जो न गये मतदान करने तुम ।
तुम्हारे आँसू भी हो जाएंगे गुम ।।
या तुमने नोट ले, बुरे नेता को दिया वोट ।
चार दिन का सुख पा फिर खाओगे चोट ।।
ना कोसो सरकार को, जब दिया नहीं तुमने वोट ।
मतदान करने न गये तुम , तो तुम में ही खोट ।।
अब तुम जाओ मतदान करने ।
अपनी समस्याओं का निदान करने ।।
जुझारू, ईमानदार और कर्मठ नेता को देना तुम वोट ।
कैसे नेता ईमानदार मिले, जब तुम नोट गिन, दो वोट ।।
यदि तुम विकास चाहते, न चाहते हो
योजनाओं में खोट ।
तो ईमानदारी से मतदान करो, न लेकर के नोट ।।
वो लोग भी कहने लगते कि नेता भ्रष्ट है ।
जिन्होंने खुद पैसे ले, दबाव में वोट दिया ,
और कुछ जो मतदान करने ही न गए थे ,
ऐसे लोगों से ही तो प्रजातंत्र को कष्ट है ।।
– नवीन कुमार जैन