** मण्डप में पहुंचने से पहले **
1991 में दहेज प्रथा पर लिखी कविता
मण्डप में पहुंचने से पहले
ग्राउण्ड में खड़े होकर
विवाह के लिए आये दूल्हे के
अण्डर-ग्राउण्ड होने से पहले
दुल्हन के पिता के कुछ कहने से पहले
दूल्हे के पिता बोल बैठे कुछ ऐसे कि चाहिए हमें
एक मोपेड मण्डप में
पहुंचने से पहले
वरना रहेगी तुम्हारी बेटी
जैसी की तैसी
यह सुनकर बोल बैठी वो ऐसे
नहीं लूटना हमे
इन लुटेरों के हाथों ऐसे
जैसे लूट चुकी हजारों नारियां
वैसे मैं नहीं लूटना चाहती
न ही मैं जलकर
आत्महत्या करना चाहती
मैं चाहती हूं सिर्फ
इन लुटेरों के ख़िलाफ़
खड़ी होकर
इनके द्वारा चलाई
दहेज प्रथा मिटाना
ले जाओ ! यह बारात
नहीं करनी मुझे यह शादी
मण्डप में पहुंचने से पहले
नहीं देख सकती
मैं अपनी बर्बादी ।।
?मधुप बैरागी