मणिपुर कांड
क्या है मर्म स्त्री का , स्त्री होकर ही जाना ।
गहरा ज़ख्म स्त्री का, स्त्री होकर जाना।
मैं भी हूं तेरे जैसे ,पुतला एक हांड मांस का।
तुझमें मुझमें फर्क नही, धड़कन ,सांस का ।
तेरी मां,बहन,बेटी के,मेरे जैसे ही है अंग
फिर काहे तू जांचना चाहे,मेरा अंग प्रत्यंग।
इज्जत नीलाम करी तूने,मुझे कैसा शर्माना ।
मर्म स्त्री का ,बस स्त्री होकर ही जाना।।
औरत को जिस मुल्क में, पर्दे में रखा जाये ।
आज शैतान बन ,नंगी सड़कों पर चलवाये ।
बलात्कार करना ,तेरा पौरूष नहीं दिखलाता ।
बस यही दिखाये,कितना तू नीचे गिर जाता ।
डूब मरो जाकर कहीं,न देखा दर्द अनजाना ।
मर्म स्त्री का , बस स्त्री हो कर ही जाना।
सुरिंदर कौर