मणिपुर और सियासत
शब्द भी डरने लगे हैं हालात बयां करने से,
उन्हें फर्क कुछ पड़ता नहीं मानवता के मरने से ।
शर्म, हया, अनैतिकता के मायने खो गए अब,
गिरावट की परिभाषा को चाहियें शब्द नए अब ।
मानव को फुर्सत नहीं सियासत से उबरने की
सियासत में कोई मायने नही गलत हो या सही
मद में हदें कोई छोड़ी नहीं हैं गिरने की
जिंदा मिसालें बन रही हैं जमीर के मरने की
आंखें बंद पर सचाई भयावह है सामने उनके
कर दोषारोपण दूसरों पर हैं खुद अच्छे बनते
सियासी जानवर घूम रहे हैं मानव बन कर
खुद जिंदा रहना चाहते मानवता को मार कर
नफरती सियासत हावी हो रही है इस कदर
दरिंदगी नासूर बन कर बह रही दीवारों-दर