मज़ा आ गया।
गिरह- हंसके जीने का सीखा नया इक सबक,
ग़म जहां से छिपाया, मज़ा आ गया।
(१)
कब से प्यासी थी, राधा के उर की धरा,
प्रीति बदरी जो छाई, मज़ा आ गया।
कान्हा लुक-छुप निहारे, प्रिय राधिका,
राधे ज्यों मुस्कुराईं,मज़ा आ गया।
देखा राधा ने कान्हा को पहली नज़र,
आत्मा खिलखिलाई मज़ा आ गया।
देखा मुरली बजाते जो, घनश्याम को,
सुध बुध ही बिसराई,मज़ा आ गया।
रोज बंसी बजा, गोपियां छेड़ता,
राधा बंसी छिपाई,मज़ा आ गया।
खाता चोरी से माखन, मटकियां फोड़ता,
मैया किन्ही पिटाई,मज़ा आ गया।
(२)
हम सुखी थे,छिपाके ग़मों की दास्तां,
ग़म जगाने सनम,बे-वजा आ गया।
जिसकी खातिर भुलाया था हमने जहां,
आज हमको ही देने वो, सज़ा आ गया।
जिनसे बनती हमारी नहीं थी कभी,
आज देने हमें वो, रज़ा आ गया।
सिर से पांव तक जो ढका झूठ से,
आज करने हमारी कज़ा आ गया।
आज नूर-ए- नीलम से सजी है ग़ज़ल
बिन बहृ के भी सुनके, मज़ा आ गया।
नीलम शर्मा