मज़हब नहीं सिखता बैर 🙏
मज़हब नहीं सिखता बैर 🙏
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मज़हब के प्यारे सज्जन
पाओं कर्म से अभिवंदन
शांत सद्भाव करूणा दया
धर्म सिखाता जग नमन
काया है मन मोहक माया
शुभ चिंतक बन करो श्रम
विकास परिवर्तन आएगा
आर्थिक सुधार हो जाएगा
पूरी होगी जन की आस
कमी ना होगी दाना पानी
भूखा रह ना जन सोयेगा
पेट भरेगा सब साथ सामान
धर्म मज़हब निज अपना हो
पर द्वेष वैर का ना सपना हो
धर्म मज़हब की आड़ सरहद
पार अराजकता नहीं आधार
जन दुःख का बनो ना कारण
स्वराज्य हमारा जन्म सिद्ध है
अधिकार बचा देश जन जान
डर पीछे हटता जो देश गद्दार
निर्भय हो सामना करता जब
हृदय से मिलता दुआ सम्मान
धर्मानुरागी मज़हवी है इंसान
कठोर दृढ़ता भूल इंसानियत
सुलगाते नफ़रत उलझाते मन
सुलझा समस्या धर्म कर्म ज्ञान
एक लाख चालीस करोड़ का
आस अरमान वीर बलबान
मिल जुल माने निज मज़हब
बैर मिटा गले मिलें सिद्ध करें
मज़हब नहीं सिखाता आपस
में बैर करना प्यार मोहब्बत
भाई चारे एकता में है दम खम ॥
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तारकेशवर प्रसाद तरूण