मज़हब की दुकान
यह ख़ामोशी है एक आहट
आने वाले किसी तूफ़ान की!
अब तो ख़ैर नहीं है बिल्कुल
खंडहर होते इस मकान की!!
नफ़रत की सियासत पर ही
टिकी हुई जिनकी बुनियाद!
अब होने ही वाली है कुड़की
उनके मज़हब की दुकान की!!
Shekhar Chandra Mitra
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