मजहब की दीवार !
मजहब की तकरार जब होती है,
इंसानियत शर्मसार तब होती है।
अंधा हो जाता जैसे हर इंसान,
मिट जाता मान और सम्मान।
याद करो इतिहास की बातों को,
सैतालिस की कड़वी यादों को,
बेबस आंखों औ फरियादों को।
नफरत से भरे उन संवादों को।
हमने क्या कुछ नहीं खोया था,
टूट सपनों को कैसे सजोया था।
अब भी मन के सब घाव हरे हैं,
समय के साथ भी नहीं भरे हैं।
गलती पुरानी फिर न दोहराएं,
मिलकर अब हर त्योहार मनाएं।
मंदिर मस्जिद गिरजा गुरुद्वारे,
ईश्वर के ही तो घर हैं सारे।
आओ मिल कर अब साथ रहें,
अल्लाह ईश्वर सब साथ कहें।
इंसानियत का धर्म बस प्यार,
न रहे कोई मजहब की दीवार।