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11 Jul 2021 · 1 min read

मजहबों का फासला

आज फिर मुझे वो दिख गई। मैं भीड़ से निकलकर उसके पास पहुँचा।
तुम कल देर से आई थी क्या? मैंने काफी देर तक इंतजार किया तुम्हारा।
उसने कोई जवाब नहीं दिया। बस मेरी तरफ देखती रही।
नींद में हो क्या? मैंने हँसते हुए कहा।
ये वक्त मजाक का नहीं है, कहकर वो चली गई?
मैं हैरानी से वही खड़ा उसे दूर जाते देखता रहा। अभी पिछले एक हफ्ते से ही मैं जानता हूँ उसे। मेरे और उसके ऑफिस का रास्ता एक ही है और उसी रास्ते ने हम दोनों को मिलाया था। पहली बार में वो कुछ ऐसे मिली थी जैसे सालों से जानती हो मुझे। पर आज क्या हो गया था उसे? ये सोचकर मैं परेशान था।
अगले दिन काफी देर बाद वो आई। मैं उसकी तरफ देखता रहा पर उसने एक बार भी मेरी तरफ नहीं देखा। दूर बैठकर बस के आने का इंतजार करती रही। थोड़ी देर बाद अचानक वो उठकर मेरे पास आई, तुम मुस्लिम हो ना! आते ही उसने सपाट शब्दों में पूछा। आज के बाद हम दोनों दोस्त नहीं।
मैं अवाक रह गया। ये मजहबों का फासला किस काम का जो इंसानियत के रास्ते में रोड़ा बन जाता है, मैं सोचने लगा।

2 Likes · 4 Comments · 422 Views
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