मजबूर मजदूर
*** मजबूर-मजदूर ***
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आज भी जो मजबूर है,
देश का वो मजदूर है।
हाल उस का बेहाल है,
ख्वाब भी चकनाचूर है।
हर पहर घूमे हर शहर,
वह अथक सा लंगूर है।
भीख भारी है भूख पर,
भूख सहनी मंजूर है।
मार मनसीरत सह रहा,
आम ऐसा ही दस्तूर है।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)