मजबूर नहीं तुम
इतने तो मजबूर नहीं तुम,
जो देख कर भी ऑंखें बंद कर लो तुम,
हालात अभी इतने भी नहीं बिगड़े,
कि संभाल ना पाओ तुम,
अभी भी है आशा की किरण झलकती,
सूनी पर टिमटिमाती आँखों में,
अभी भी लहलहाती है एक पती,
इक सूखी जर्जर डाल पर,
अभी भी बैठा है कोई किसी के इंतज़ार में,
अभी भी कंपकपाते हाथ बैठे है,
इस उम्मीद में कि गिरते ही,
थाम लेगा तू,
जब इतनी नज़रे देख रही हों,
तुम्हें उमीदें लगा कर,
तो इतने भी मजबूर नहीं हो तुम,
कि थाम ना पाओ सब के जज्बात,
ना बन पाओ आस-उम्मीद किसी की,
इतने भी मजबूर नहीं हो तुम …..