मजबूरी
ज़ाना क्यों ना समझी
तूने मेरी मजबूरी
मेरे अलावा था
सब तेरे लिए जरूरी
हां एक दिन करता जरूर
तेरी सारी wishes पूरी
पर तूने ना समझा
मेरा साथ जरूरी
भले मैं तुझपे कितना भी करू गुस्सा
पर तू ही तो थी ना मेरी कमज़ोरी
भले ‘ जिन्दगी ‘ में मिले सब
पर ‘ चाहत ‘ तो रह गयी ना अधूरी
यदि तू समझता ना मेरी मजबूरी
तो होती तेरी – मेरी life पूरी !
” अब तेरे छोड़ जाने के बाद
मेरा दिल तेरी यादों में खो रहा हैं
किसने कहा मैं अकेला हू पगली
देख तो सही – ये ‘आसमान’ भी मेरे साथ रो रहा हैं ”
The dk poetry