मजबूरी
मजबूरी
“बाबूजी, आपकी तबीयत ठीक नहीं है। ऐसी स्थिति में कल की रैली में आपको नहीं जाना चाहिए।” आठवीं कक्षा में पढ़ रहे किशोर बेटे ने कहा।
“बेटा, सरपंच जी ने स्पष्ट कहा है कि प्रधानमंत्री जी आ रहे हैं। इसलिए वहाँ हम सब लोगों का जाना जरूरी है।” उसने अपनी विवशता बताई।
“बाबूजी, वहाँ हजारों लोग होंगे। कौन आपको पूछने वाला है ? आपके नहीं जाने से किसी को कुछ फर्क नहीं पड़ेगा, लेकिन यदि आपको कुछ हो गया, तो हम अनाथ जरूर हो जाएँगे।”
“तुम मेरी चिंता मत करो बेटा। मुझे कुछ नहीं होगा। मुझे प्रधानमंत्री के रैली की चिंता नहीं, सरपंच जी की चिंता है। यदि मैं रैली में नहीं गया, तो गरीबी रेखा सूची ही नहीं, मतदाता सूची से भी मेरा नाम काट दिया जाएगा और उसके बाद हमारी सभी सरकारी सुविधाएँ छीन जाएँगी।”
पिताजी की बातें सुन वह बगलें झाँकने लगा।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़