मजबूरी है आवारगी फ़ितरत नहीं मेरी
मजबूरी है आवारगी फ़ितरत नहीं मेरी
रहने को घर ही ना मिले ये और बात है
काली घटाओं को देखकर दिल खुश था बहुत
सूखा मेरा आँगन रहे ये और बात है
तू इक शेर कहे तो में ग़ज़ल मुकम्मल कर दूँ
तेरे ज़ज़्बात ही ना हिले ये और बात है
होती दुआ भी सलाम के साथ हाय रब्बा
नज़र नज़र से मिल न पाये ये और बात है
जीने का मज़ा होता हर शै में क़शिश होती
दिल में ख़लिश ही ना मिले ये और बात है
दिल टूटे तो टूटे मगर जुड़ता भी रहे
हमेशा का दर्द रह जाये ये और बात है
आ गया त़ज़र्बा भी हां मगर देर से आया
फिर से मौका ही ना मिले ये और बात है
माना यकीं से पहले इम्तेहान होता है
कभी उस दौर से न गुज़रे ये और बात है
सारे नहीं कुछ की ‘सरु’ ताबीर होगी ज़रूर
कोई ख्वाब ही ना देखे ये और बात है