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11 Dec 2016 · 1 min read

मजबूरी है आवारगी फ़ितरत नहीं मेरी

मजबूरी है आवारगी फ़ितरत नहीं मेरी
रहने को घर ही ना मिले ये और बात है

काली घटाओं को देखकर दिल खुश था बहुत
सूखा मेरा आँगन रहे ये और बात है

तू इक शेर कहे तो में ग़ज़ल मुकम्मल कर दूँ
तेरे ज़ज़्बात ही ना हिले ये और बात है

होती दुआ भी सलाम के साथ हाय रब्बा
नज़र नज़र से मिल न पाये ये और बात है

जीने का मज़ा होता हर शै में क़शिश होती
दिल में ख़लिश ही ना मिले ये और बात है

दिल टूटे तो टूटे मगर जुड़ता भी रहे
हमेशा का दर्द रह जाये ये और बात है

आ गया त़ज़र्बा भी हां मगर देर से आया
फिर से मौका ही ना मिले ये और बात है

माना यकीं से पहले इम्तेहान होता है
कभी उस दौर से न गुज़रे ये और बात है

सारे नहीं कुछ की ‘सरु’ ताबीर होगी ज़रूर
कोई ख्वाब ही ना देखे ये और बात है

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