मजबूरियाँ बं गई
**** मजबूरियाँ बन गई ****
***********************
हम दोनों में हैं दूरियाँ बन गई
लगता है ये मजबूरियाँ बन गई
तेरे बिन रह लेंगे जहां में तन्हां
जाने ये फांस पहेलियाँ बन गई
राही थे हम अंजान ख्यालों भरे
बातें छोटी नादानियाँ बन गई
दीवानों सी हालत यहाँ पर हुई
भावनाएँ परेशानियाँ बन गई
नीर बिना मीन सी हालत है हुई
यादें तेरी परछाइयाँ बन गई
हमारी मुलाकातें दास्तान बनी
भोली बातें शैतानियाँ बन गई
सुखविंद्र गमों में है डूबा हुआ
गुफ्तगू भी हैं तन्हाइयाँ बन गई
***********************
सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)