मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
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मुक्तक
मजबूरन पैसे के खातिर तन यौवन बिकते देखा।
पैसे वालों को भी यारो पैसे पर मरते देखा।
मजबूरी तो मजबूरी है क्या क्या ये करवाती है।
पर औरों की मज़बूरी पर उनको खुश होते देखा।
……..✍️ सत्य कुमार प्रेमी