मजबूत हाथ
नहीं झूकता
शीश गर हैं
हाथ मजबूत
लोह हस्त
तोड़ सकते हैं
पहाड़ भी
नमन करते
हाथ
ईश को
पाते आशीर्वाद
रहते खुश
न हों
इतने मजबूर
फैले नही
हाथ माँगने
बने सक्षम
भरे झोली
सब की
देते ईश्वर
इतना सब को
लें खुले हाथ से
भरे आंचल अपना
स्वलिखित
लेखक संतोष श्रीवास्तव भोपाल