*मजदूर*
भूगगन में काम कर, पाताल में सुरंग बनाई।
चट्टानें तोड़ी और रूक मोड़े, रेल लाइन भी बिछाई।
नहीं मानी कभी मैंने, किसी कार्य से हार,
बनाता ताजकिला तक, होता शहंशाह का प्रचार।।
झुके हिमालय हमारे आगे,
मेहनत करें हम न हारें।
हमने दिन रात एक किया है,
तोड़फोड़ निर्माण किया है।।
इच्छाएंँ हमारी बहुत है बाकी,
तिहाड़ी मिले वो नहीं है काफी।
न कभी मैं काम से हारा,
लेकिन नाम तुम्हारा काम हमारा।।
काम करूंँ बन जाता झूला,
तब जाकर घर जलता चूल्हा।
फिर भी हम मजबूर हैं,
दुर्भाग्य हम मजदूर हैं।।