मजदूर
हाथों की लकीरों को देख,
हम नहीं लिखते तकदीरों को।
अपना हाथ जगन्नाथ मान,
लगा देते हैं अपनी जान।
हम खेतों में, हम खदानों में,
हम फैक्ट्रियों में, हम गंदी नालियों में।
अपने पसीने को नमक बना,
खाते दो जून सूखी रोटी।
या फिर सो जाते खाली पेट,
जब मारी जाती है मजदूरी।
नहीं जानना चाहता,
जमाना हमारी मजबूरी।
कड़ी मेहनत करते – करते गर बीच में सुस्ता लें दो पल,
तुरंत पड़ जाता है लोगों के माथे पर बल।
कामचोर कह दुत्कारे जाते हैं।
हम कामचोर नहीं साहब,
हम हैं मेहनतकश।
हमारी मेहनत का छीन आप खुद पहनें रेशम,
और हम तरसें कतरन को भी।
मत कहो जय जवान – जय किसान,
कहो जय बलवान – जय धनवान।
क्योंकि जिसकी लाठी उसकी भैंस,
सदियों से समाज की है यही रीत।