मजदूर
आज जब मैंने मजदूर दिवस पर मजदूर पर नजर डाली तो 2 पंक्तियाँ लिखने को मजबूर हो गया।
रात-दिन मेहनत करता है।
लेकिन कभी न थकता है।।
न शिकायत किसी से कोई ;
समय से सोता-उठता है।।
वो कौन है भाई जो,
खुद को मजदूर कहता है।1।
न करता वह पत्थर बाजी,
न धर्म के नाम पे लड़ता है।
कर्म ही पूजा होती उसकी;
मेहनत को ही मरता है।।
वो कौन है भाई जो,
खुद को मजदूर कहता है।2।
कर्म पे टिकी उसकी हर श्वास।।
आत्मविश्वास रखता है।
छल उसके मन मे न आये;
झूठ से वह डरता है।।
वो कौन है भाई जो,
खुद को मजदूर कहता है।3।
अन्याय नही कर सकता है पर
अत्याचार वो सहता है।
सबका भाव बढ़ा देता है;
खुद अभाव में पलता है।
वो कौन है भाई जो,
खुद को मजदूर कहता है।4।
न वह हिन्दू न वह मुस्लिम
भेद न उसको जमता है।
दुष्प्रचार से दूर रहे वह;
इंसानियत में रमता है।।
वो कौन है भाई जो,
खुद को मजदूर कहता है।5।
आलस उसे सता न पाए।
सत्ता का मोहरा बनता है।
रुकता नहीं कभी वो ‘कौशल’;
बस चलता ही चलता है।।
वो कौन है भाई जो,
जो खुद को मजदूर कहता है।6।
कौशलेंद्र सिंह लोधी ‘कौशल’